कथा कहने या कहानी सुनाने की परंपरा हमारे देष में हजारों वर्षों से चली आ रही है। घरों में बड़े - बुजुर्गों द्वारा छोटे बच्चों को अनौपचारिक ढं़ग से पौराणिक एवं लोककथाओं के माध्यम से चरित्र निर्माण के साथ - साथ स्वस्थ मनोरंजन तथा भाषा संस्कार के रूप में कहानी सुनाने की पद्धति बहुत महत्वपूर्ण है। औपचारिक रूप से भी देखें तो छत्तीसगढ़ में विभिन्न लोक नाट्यों, रहस, गम्मत, नाचा, दसमत कैना या पण्डवानी, भरथरी जैसी कथागायन की एक समृद्ध परंपरा रही है जिसके मूल में आख्यान ही है। इसी कहानी सुनाने की परंपरा को ’’बेस्ट प्रैक्टिसेज’’ के रूप में अपनाकर महाविद्यालय इसके माध्यम से प्रत्येक विद्यार्थियों की भाषा दक्षता, अभिव्यक्ति कौषल आदि की संवृद्धि करना चाहता है। साथ ही कहानियों के माध्यम से विद्यार्थी एतिहासिक पौराणिक चरित्रों के गुणों तथा आचार - विचार एवं मूल्यों के विविध आयामों को अपने जीवन में अपनाने हेतु प्रेरित हो सकेंगे। इसी क्रम में महाविद्यालय में ’कथा कहन’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।